Community Health Nursing -I, Epidemiology Triad Uses , Aims, GNM first year

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Community Health Nursing -I Important Questions Epidemiology And It's Uses And Epidemiology Triad.

Community Health Nursing -I Notes In Hindi. Epidemiology Triad Notes In Hindi.




Q  एपिडेमियोलोजी का अर्थ क्या है?

What is the meaning of epidemiology? 


उत्तर- Epidemiology शब्द ग्रीक भाषा के तीन शब्दों से मिलकर बना है

Epi + Demos + Logus Epi का अर्थ है “ among” अर्थात् मध्य में Demos का अर्थ होता है "People" तथा Logus का अर्थ है "science” अर्थात् लोगों के बीच पाए जाने वाली घटना का विज्ञान (जानपदिक रोग/महामारी विज्ञान)।


प्रश्न . जानपदिक रोग विज्ञान या एपिडेमियोलोजी को परिभाषित कीजिए व इसके उद्देश्य लिखिए। 

Define epidemiology and write its aims.

उत्तर- एपिडेमियोलोजी (Epidemiology) - 

मानव जनसंख्या में स्वास्थ्य संबंधित स्थितियों एवं घटनाओं के वितरण एवं निर्धारक तत्वों के अध्ययन तथा स्वास्थ्य समस्याओं के नियंत्रण में किए जाने वाले प्रयास और ज्ञान का अनुप्रयोग एपिडेमियोलोजी कहलाता है।

जानपदिक रोग विज्ञान के उद्देश्य (Aims of Epidemiology) 


अन्तर्राष्ट्रीय एपिडेमियोलोजिकल एसोसिएशन - (International Epidemiological Association) के अनुसार एपिडेमियोलोजी के निम्न उद्देश्य हैं-


1. मानव जनसंख्या में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के वितरण एवं विस्तारण का वर्णन करना ।


2. रोग उत्पन्न करने वाले कारकों का अध्ययन करना।


3. बीमारियों की रोकथाम, नियंत्रण एवं उपचार हेतु आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं का नियोजन, क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन करना तथा इन स्वास्थ्य सेवाओं में प्राथमिकता निर्धारित करना।


प्रश्न . जानपदिक रोग विज्ञानत्रयी क्या है? इसके कारक, परपोषी व वातावरणीय घटकों का वर्णन कीजिए। 

What is epidemiological triad? Describe its agent, host and environmental factors.

उत्तर- जानपदिक रोग विज्ञानत्रयी (Epidemiological Triad) - मनुष्य में रोग की उत्पत्ति के लिए तीन चीजें आवश्यक हैं- कर्ता या कारक (agent), परपोषी (host) और वातावरण (environment)। इन तीन घटकों को जानपदित रोग विज्ञानत्रयी कहते हैं। इन तीनों में से किसी एक के न होने पर रोग नहीं हो सकता।


1. कारक (Agent) – किसी भी बीमारी को होने के लिए सबसे पहली आवश्यकता होती है बीमारी उत्पन्न करने वाले - कारक। ये सजीव या निर्जीव हो सकते हैं। रोग उत्पन्न करने वाले कारकों को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-


(a) जैविक कारक (Biological Agents) जैविक कारक, जैसे- वाइरस, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ आदि ये संक्रमण के पात्र (reservoir) में पाए जाते हैं जैसे- मनुष्य, पशु, कीट, मिट्टी।


(b) पोषक कारक (Nutrient Agents) मानव स्वास्थ्य के लिए पोषक तत्व अति आवश्यक है। शरीर में किसी पोषक पदार्थ (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण, विटामिन, जल) की कमी या अधिकता मनुष्य में रोग उत्पन्न कर देती है, जैसे- रात्रि-अंधता, बेरी-बेरी, पेलेग्रा आदि।


(c) भौतिक कारक (Physical Agents) - इसमें शीत, ताप, आर्द्रता, दाब, विकिरणें, विद्युत-ध्वनि, आदि शामिल हैं, - इनमें असंतुलन रोग उत्पत्ति का कारण बनते हैं।


(d) रासायनिक कारक (Chemical Agents) – मानव शरीर में मौजूद एवं स्त्रावित होने वाले रसायनों की अधिकता या - कमी से रोग उत्पन्न हो सकते हैं। बाह्य रासायनिक कारक जैसे-गैस, धूल, धातु, धुंआ, कीटनाशक, एलर्जिक पदार्थ आदि भी मानव को रोगग्रस्त कर सकते हैं।


(e) यांत्रिक कारक (Mechanical Agents) - घर्षण अथवा अन्य यांत्रिक कलपुर्जी से चोट आदि भी रोग उत्पन्न कर सकते हैं।


2. परपोषी घटक (Host Factor ) - परपोषी मानव-शरीर होता है जिसमें रोगकारक वृद्धि एवं प्रजनन करता है एवं रोग उत्पन्न करता है। परपोषी से संबंधित घटक हैं-


(a) जनसांख्यिकी घटक (Demographic factor)

(b) आनुवांशिक घटक (Genetic factors) 

(c) सामाजिक, आर्थिक घटक (Socio-economic factors)

(d) पोषण (Nutrient)

(e) व्यवसाय (Occupation)

(f) जीवन-शैली (Life-style) और आदतें (habits)


3. वातारणीय घटक (Environmental Factor) -दूषित वातावरण अनेक रोगों के लिए उत्तरदायी है, व्यक्तिगत एवं सामुदायिक स्वास्थ्य के लिए वातावरण का स्वस्थ होता अत्यंत आवश्यक है।




प्रश्न . जानपदिक रोग विज्ञान की उपयोगिता का वर्णन कीजिए।

Describe the uses of epidemiology.

उत्तर- एपिडेमियोलोजी के उपयोग निम्न हैं-


 1. समुदाय के स्वास्थ्य स्तर का ऑकलन करना - Epidemiological survey वर्णनात्मक एपिडेमियोलोजी (descriptive epidemiology) द्वारा स्वास्थ्य स्तर का आंकलन किया जाता है। इनके द्वारा विभिन्न प्रकार की मृत्यु दरों, जैसे- शिशु मृत्यु दर (IMR), मातृ मृत्यु दर (MMR), पेरिनेटल मृत्यु दर (PMR) आदि के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। इन आँकड़ों से किसी बीमारी, उसकी दर तथा फैलाव के बारे में पता लगाया जाता है।


2. समुदाय में पायी जाने वाली बीमारियों तथा उनके लक्षण में आने वाले परिवर्तन का अध्ययन करना -

 एपिडेमियोलोजी के द्वारा बीमारियों में आने वाले उतार-चढ़ाव, इनके लक्षणों में होने वाले परिवर्तनों तथा बीमारियों का समुदाय के सदस्यों पर पड़ने वाले प्रभावों का पता करने में उपयोगी होता है।


3. बीमारियाँ होने के व्यक्तिगत जोखिम का अनुमान लगाना - 

प्रत्येक बीमारी के कुछ न कुछ जोखिम कारक होते हैं. जैसे- मोटे लोगों में हृदय रोग तथा डायबिटीज का खतरा। इसी प्रकार पर्यावरणीय एवं व्यक्तिगत अस्वच्छता तथा कुपोषण (malnutrition) ट्यूबरकुलोसिस के संक्रमण को बढ़ाते हैं। एपिडेमियोलोजी के अध्ययन द्वारा इन जोखिमों का पता लगाकर उनमें कमी अथवा रोकथाम कर संबंधित बीमारियों पर नियंत्रण एवं रोकथाम पाया जाता है।


4. बीमारियों के कारणों का पता लगाना - 

एपेडिमियोलोजिकल सर्वे के द्वारा प्राप्त विभिन्न तथ्य जैविक (biological),भौतिक(physical),रासायनिक(chemical),पर्यावरणीय(environmental), सामाजिक, आर्थिक आदि कारकों से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव स्पष्ट होते हैं।


5. स्वास्थ्य सेवाओं के नियोजन में सहायक - एपिडेमियोलोजिकल अध्ययनों द्वारा समुदाय में मौजूद विभिन्न बीमारियों की उपस्थिति का पता करने के बाद उनकी रोकथाम, नियंत्रण एवं उपचार हेतु नियोजन किया जाता है। उनके रोकथाम हेतु पर्यावरणीय स्वच्छता, टीकाकरण तथा स्वास्थ्य शिक्षा देने के बारे में योजना बनायी जाती है।


6. स्वास्थ्य सेवाओं का मूल्यांकन करना - 

 समुदाय में प्रदान सेवाएं पूर्णतः प्रभावी हैं या नहीं, इनका मूल्यांकन करना आवश्यक है। एपिडेमियोलोजिकल सर्वे यह स्पष्ट करते हैं कि किसी भी स्वास्थ्य अभियान के उस रोग के रोगियों की संख्या में कितनी कमी आई हैं, इससे मूल्यांकन करने में सहायता मिलती है।


7. बीमारियों की प्राकृतिक इतिवृत - एपिडेमियोलोजी से विभिन्न बीमारियों की प्राकृतिक इतिवृत के बारे में जानकारी प्रदान करती है, जोकि उनके कारणों को पता करने, रोकथाम तथा उपचार में सहायक होती है तथा ये इलाज से मरीज के ठीक होने की संभावना को भी प्रदर्शित करती है।


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