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वीनिंग (Weaning) -
वीनिंग वह प्रक्रिया है जिसके अर्न्तगत बच्चे को धीरे-धीरे माँ के दूध से सामान्य पारिवारिक आहार में लाते हैं।
इस दौरान उसे माँ के दूध के अलावा ऊपरी आहार (top feed) या पूरक आहार (supplementary foods) दिए जाते हैं जो बच्चे की इस दौरान बढ़ी हुई पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
यहाँ वीनिंग का तात्पर्य स्तनपान बंद कर देना नहीं है।
कृत्रिम पोषण (Artificial Feeding) -
माँ के दूध से बच्चे का पोषण प्राकृतिक पोषण कहलाता है लेकिन जब माँ के दूध से पोषण न करके ऊपरी आहार (top-feeds) एवं माँ के दूध के प्रतिस्थापक (breast-milk substitute) दिए जाएं तो इसे कृत्रिम पोषण (artificial feeding) कहते हैं।
अंडर फाइव क्लीनिक (Under Five Clinic) -
अंडर फाइव क्लीनिक पाँच वर्ष तक के बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित होते हैं। इस क्लीनिक के द्वारा पाँच वर्ष तक के बच्चों को नैदानिक उपचारात्मक तथा रक्षात्मक प्रकार की स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
रक्ताल्पता (Anaemia) -
लाल रक्त कणिकाओं का आयतन व आकार या उनमें हीमोग्लोबिन की मात्रा या दोनों का सामान्य स्तर से नीचे गिरना एनीमिया कहलाता है।
"लाल रक्त कणिकाओं की परिमाणात्मक व मात्रात्मक कमी को एनीमिया कहते हैं।
" विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार 6 माह से 6 वर्ष की आयु में 11 gm / dL तथा 6 वर्ष से 14 वर्ष के बच्चों में 12gm/dL से कम हीमोग्लोबिन स्तर एनीमिया की श्रेणी में आता है।
टीकाकरण (Immunization)
शरीर में वैक्सीन (vaccine), इम्यूनोग्लोबुलीन (immunoglobulin) या ऐन्टीसीरम (antiserum) प्रविष्ट कर किसी विशिष्ट रोग के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करना प्रतिरक्षण ; k टीकाकरण (immunization) कहलाता है।
इसका उद्देश्य बच्चों को छ: जानलेवा बीमारियों-गलघोंटू ( diphtheria), कुकर खाँसी (whooping cough), टेटनस, तपेदिक (tuberculosis), पोलियो व मीजल्स से मुक्ति दिलाना है। भारत में इसे 1978 में लागू किया गया था। -
आमाशय / मध्यांत्र छेदन पोषण (Gastrostomy / Jejunostomy Feeding) जब बालक के ऊपरी - आन्त्र-मार्ग या सामान्य मार्ग की शल्य क्रिया या अन्य किसी परेशानी के कारण पोषण को आमाशय एवं आँतों तक पहुँचाना संभव नहीं होता है तब गैस्ट्रोस्टोमी (gastrostomy) एवं जेजुनोस्टोमी (jejunostomy) के द्वारा पोषण फीडिंग की जा सकती है।
एनीमा (Enema)
रोगी की आंत्र की सफाई हेतु मलाशय द्वारा द्रव प्रविष्ट कराना अथवा औषधि या पोषण प्रवेश करवाना ही एनीमा देना कहलाता है।
छोटे बच्चों को भी एनीमा बड़ों के तरीके से ही दिया जाता है, बच्चों को दिए जाने वाले एनीमा में द्रव की मात्रा बड़ों की तुलना में कम होती है।
प्रकाश चिकित्सा (Phototherapy) -
फोटोथैरेपी या प्रकाश चिकित्सा ऐसी चिकित्सा है जिसमें शिशु को खुले नीले प्रकाश के नीचे रखा जाता है। इसमें बिलिरुबिन का प्रकाशभंगुरण होता है जो त्वचा में जमे अप्रत्यक्ष बिलिरुबिन को घुलनशील अहानिकारक पदार्थ में बदल देता है जो गुर्दों द्वारा उत्सर्जित कर दिया जाता है।
इन्क्यूबेटर (Incubator).
नवजात शिशु को स्थिर, गर्म, आर्द्र एवं सुरक्षित वातावरण प्रदान करने वाला यांत्रिक 1 उपकरण इन्क्यूबेटर कहलाता है।
यह नवजात शिशु को उचित नर्सिंग देखभाल प्रदान करने में महत्वपूर्ण सहायक उपकरण है।
इसमें शिशु नग्न अवस्था में पाला जाता है व शिशु की जरूरत के अनुसार तापमान व आर्द्रता कम व ज्यादा किया जा सकता है।
अपरिपक्व शिशु (The Premature Infant)
गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूर्ण होने से पूर्व जन्म लेने वाले शिशु - अपरिपक्व शिशु कहलाते हैं।
कम वजन वाला जन्मा शिशु (Low Birth Weight Baby )
ऐसा शिशु जिसका वजन जन्म के समय 1500-2500 ग्राम तक होता है लो बर्थ वैट बैबी कहलाता है।
अतिसार ( Diarrhoea)
- यह कब्ज के विपरीत होता है इसमें मल पतला हो जाता है। कई बार मल त्याग करते-करते रोगी बहुत परेशान हो जाता है। आँतों द्वारा द्रव का अवशोषण कार्य सही ढंग से न हो पाने के कारण अतिसार या डायरिया की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसे जठरान्त्र-शोथ (gastroenteritis) भी कहते हैं।
वमन (Vomiting)
वमन आमाशयिक पदार्थों को ग्रासनली और मुँह से बाहर फेंकने की एक प्रतिवर्ती क्रिया है।
खसरा (Measles) -
खसरा एक संक्रामक रोग है जिसमें सर्वप्रथम ऊपरी श्वसन तंत्र प्रभावित होता है, इसका रोगकारक paramyxo virus होता है। यह रोग मुख्यतः छोटे बच्चों में पाया जाता है।
गलसुआ (Mumps) –
Paramyxo वाइरस के कारण पैरोटिड लार ग्रंथि का संक्रमण एवं प्रदाह कर्ण पूर्व ग्रंथि शोथ या गलसुआ कहलाता है।
विदर ओष्ठ या खण्डौष्ठ (Cleft Lip) - ऊपरी होठ बनाने वाले मध्य एवं पार्श्व ऊतक के जुड़ने की असफलता के - कारण होठ में पाई जाने वाली दरार, विदर ओष्ठ (cleft lip) कहलाती है। यह एक तरफ या दोनों तरफ हो सकता है।
- खण्ड तालु (Cleft Palate) - तालु बनाने वाले ऊतक के जुड़ने की असफलता को विदर तालु (cleft palate) कहते हैं। यह केवल मृदु-तालु (soft-palate), कठोर तालु अथवा मैक्सिला हड्डी तक फैली दरार के रूप में हो सकता है। यह भी मध्य रेखा के दायीं या बायीं ओर हो सकता है। यह भी एक तरफ या दोनों तरफ हो सकता है।
डायफ्रामेटिक हर्निया (Diaphragmatic Hernia) -
यह एक जन्मजात विकार है जिसमें उदरीय अंगों का. डायफ्राम में विकार के फलस्वरूप वक्ष गुहा में प्रवेश या प्रलम्बन (protrusion) होता है।
किसी अंग के लूप अथवा ऊतक का किसी असामान्य खुले भाग से प्रतिक्षेपन हर्निया कहलाता है।
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात (Cerebral Palsy) -
प्रमस्तिष्कीय पक्षाघात दीर्घकालीन, चालन संबंधी निर्योग्यता (chronic motor disability) है जो मस्तिष्कीय मूल की तंत्रिका-पेशीय (neuromuscular) विकार के परिणामस्वरूप होती है।
इसमें पेशीय नियंत्रण (muscle control), मुद्रा (posture), प्रचालन (movement) व क्षमता (strength) संबंधी दोष पाए जाते हैं।
मस्तिष्कावरण शोथ (Meningitis ) -
मस्तिष्क और मेरूरज्जु (spinal cord) को ढँकने वाली झिल्लियों (meninges) के प्रदाह या सूजन (inflammation) को मस्तिष्कावरणशोथ या मैनिन्जाइटिस कहते हैं।
यह बच्चों की तीव्र व घातक बीमारी है जिसे पीडियाट्रिक्स में इमरजेन्सी की तरह माना जाता है।
आहारनाल की अविवरता (Oesophageal Atresia) -
यह एक जन्मजात विकृति है जिसमें भ्रूणीय विकास के दौरान अपूर्णता के कारण ग्रासनली, ग्रसनी एवं आमाशय के बीच निरंतरता नहीं होती है।
ग्रासनली एक फिस्टुला के द्वारा श्वास नली से संबद्ध हो सकती है जिसे श्वासनली ग्रसिका नासूर या नालव्रण (tracheoesophageal fistula) कहते हैं।
पायलोरिक संकुचन (Pyloric Stenosis) -
पायलोरिक स्टैनोसिस आमाशय के पायलोरिक मार्ग (lower end of stomach) का संकुचन (stenosis) है जो इस भाग की वृत्ताकार पेशियों की अतिवृद्धि (hypertrophy) के कारण होने वाला अवरोध है।
हाइपोस्पेडियस (Hypospadias) –
यह शिश्न का जन्मजात विकार (anomaly ) है जिसमें मूत्र-छिद्र (urethral - opening) शिश्न की निचली सतह पर खुलती है व बालिकाओं में योनि के अंदर मूत्र छिद्र खुलता है।
छिद्र की उपस्थिति शिश्नमुण्ड से (glans penis) से लेकर पैरीनियम तक कहीं भी हो सकती है।
डेंगू (Dengue) –
डेंगू एडीस एजेप्टाई (aedes aegupti) मच्छर वाहित संक्रामक रोग है जो डेंगू वाइरस द्वारा उत्पन्न - होता है। इसे हड्डी तोड़ बुखार (break bone fever) भी कहते हैं।
ओटायटिस मीडिया (Otitis Media) -
मध्य कर्ण का संक्रमण एवं प्रदाह होना otitis media कहलाता है। (Otitis media is characterized by infection and inflammation of middle ear).
टॉन्सिलाइटिस (Tonsilitis) -
मुख गुहा के पिछले भाग (oropharynx) में स्थित टॉन्सिल में संक्रमण द्वारा प्रदाह व सूजन ही टॉन्सिलाइटिस कहलाता है।
बाल शोषण (Child Abuse)
अभिभावकों, माता-पिता, रिश्तेदार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बच्चे के शारीरिक, - लैंगिक, भावनात्मक या मानसिक विकास के लिए दुर्व्यवहार करना बाल शोषण या बाल प्रताड़ना कहलाता है।
शय्यामूत्रण या बिस्तर गीला करना (Enuresis or bed wetting) -
पाँच वर्ष की आयु से अधिक के बच्चे यदि बिस्तर गीला करते हैं तो उसे शय्यामूत्रण या बिस्तर गीला करना कहते हैं। यह अधिकतर बच्चों में पायी जाने वाली एक सामान्य सी समस्या है।
• प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण [Protein Energy Malnutrition (PEM)] -
यह वह चिकित्सकीय स्थिति होती है जो प्रोटीन की कमी व ऊर्जा की अपर्याप्तता के फलस्वरूप होती है।
यह कुपोषण दो प्रकार का होता है-
क्वाशिओरकर (Kwashiorkor) व मरासमस या सूखा रोग (Marasmus) ।
मरासमस (Marasmus)
मरासमस कुपोषण का ऐसा प्रकार है जो अपर्याप्त कैलोरी उपभोग के परिणामस्वरूप - उत्पन्न होता है।
इसमें पेशियों की गम्भीर क्षति तथा उपत्वचीय वसा की गम्भीर कमी से बालक सूखा-सूखा लगता है।
यह सामान्यत: प्रथम वर्ष की आयु में प्रारंभ होता है तथा किशोरावस्था तक भी हो सकता है।
क्वाशिओरकर (Kwashiorkor)
• बालक के भोजन में प्रोटीन की न्यूनता जिसके साथ में कैलोरी न्यूनता भी जुड़ी होती है को क्वाशिओरकर कहते हैं। सामान्यतः यह 6 माह से 5 वर्ष की आयु के मध्य प्रकट होती है।
मृदापाइका भक्षण (PICA) -
अप्राकृतिक वस्तुओं जैसे- मिट्टी, चाक, साबुन, क्रेयोन्स आदि को खाने की आदत को PICA अथवा Geophagia कहते हैं।
बाल अपराध (Juvenile Delinquency) –
18 वर्ष से छोटे बच्चों द्वारा सामाजिक या कानूनी अपराध अथवा गलत - व्यवहार बाल अपराध कहलाता है। हत्या जैसे जघन्य अपराधों में उम्र की सीमा 16 वर्ष है अर्थात् 16-18 वर्ष के बच्चों को वयस्क मानकर कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
एनोरेक्सिया नर्वोसा (Anorexia Nervosa) -
यह खाने से संबंधित रोग है, जो सामान्य शरीर वजन के बने रहने का प्रतिषेध करता है तथा गम्भीर वजन क्षय द्वारा पहचाना जाता है।
जन्मजात विकार (Congenital Abnormalities) -
शिशु में जन्म के समय से ही उत्पन्न रहने वाली विकृतियां या विकार जन्मजात विकार कहलाते हैं।
स्पाइना बाइफिडा (Spina Bifida)
यह मेरूदण्ड का जन्मजात विकार है जिसमें मेरूदण्ड की एक या अधिक - कशेरूकाएं पूर्णतः सम्बद्ध नहीं हो पाती हैं अतः उनके बीच से ऊतक का एक पुटिका के रूप में बहिर्क्षेपण (protrusion) हो जाता है।
जलशीर्ष (Hydrocephalus) -
इसका शाब्दिक अर्थ है मस्तिष्क में पानी भर जाना। सेरेब्रोस्पाइनल द्रव (C.S.F.) के उत्पादन व अवशोषण में असंतुलन के परिणामस्वरूप मस्तिष्क में असामान्य रूप से C.S.F. के इकट्ठा होने को जलशीर्ष (hydrocephalus) कहते हैं। इसमें नवजात का सिर असामान्य रूप से बड़ा दिखाई देता है।
एपेन्डिसाइटिस (Appendicitis) -
वर्मीफार्म अपेन्डिक्स की गुहिका में किसी भी कारण से होने वाले अवरोध के परिणामस्वरूप उसमें होने वाली सूजन को एपेन्डिसाइटिस कहते हैं। यह 5 वर्ष से अधिक आयु के बच्चों में ही होता है। इससे कम में नहीं।
मेकल्स डायवर्टीक्यूलम (Meckel's Diverticulum) –
यह छोटी आंत के एंटीमीसेंट्रिक सीमा से उत्पन्न होता है। -- यह जठरांत्रमार्ग का सबसे सामान्य जन्मजात दोष है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative Colitis) –
यह आंत्र की शोध युक्त व्याधि है जो कोलोन तथा रेक्टम तक सीमित रहती है। शोध श्लेष्मा तथा अधोश्लेष्मा को प्रभावित करता है जिससे व्रण, रक्तस्राव तथा कोलोन का ईडीमा हो जाता है।
सीलिएक रोग (Celiac Disease) –
यह ऊपरी छोटी आंत की एक immune-mediated रोग अवस्था है जोकि ग्लूटेन प्रोटीन (gluten protein) के अंर्तग्रहण के प्रति अनुपयुक्त immune response द्वारा प्रेरित होती है।
कृमि या वार्म (Worms)
• गर्म जलवायु प्रदेशों में कृमि संक्रमण आम बात है। ये शरीर में प्रवेश कर विभिन्न प्रकार - की व्याधियाँ उत्पन्न कर देते हैं। व्यक्तिगत एवं वातावरणीय स्वच्छता तथा जन स्वास्थ्य सुधार के द्वारा इनको रोका जा सकता है।
रिह्यूमेटिक फीवर (Rheumatic Fever)
यह - group A beta haemolytic streptococci के कारण होने वाला systemic inflammation है। इसमें बच्चे में बुखार, एक या अधिक जोड़ों में तीव्र दर्द, सूजन व अकड़न होती है। इसे आमवाती ज्वर भी कहते हैं। इसके बाद अक्सर हृदयशोथ (carditis) हो जाता है।
रक्त-संकुलयी हृदयी विफलता [Congestive Cardiac Failure (C.C. F. ) ] -
जब शरीर की सामान्य उपापचयी (metabolic) आवश्यकताओं के लिए आवश्यक मात्रा में रक्त भेजने (output) में हृदयी पेशियाँ असफल हो जाती हैं। तो इसे सी.सी.एफ. (congestive cardiac failure) कहते हैं। इसके फलस्वरूप फेफड़ों व शारीरिक शिरीय तंत्र में रक्त जमा हो जाता है।
रक्त कैंसर (Blood cancer or leukemia) -
यह कैंसर का एक प्रकार है जिसमें रक्त में श्वेत रक्त कोशिकाओं में अनियंत्रित एवं तीव्र कोशिका विभाजन होते हैं जिससे अपरिपक्व श्वेत रक्ताणुओं का निर्माण होता है। यह अपरिपक्व श्वेत रक्ताणु शरीर में रक्त, अस्थिमज्जा एवं लसिका तंत्र में जमा हो जाते हैं।
थैलेसीमिया (Thalassemia)
यह एक प्रकार का जन्मजात आनुवांशिक हीमोलाइटिक एनीमिया है। इसमें - हीमोग्लोबिन की B-chain का निर्माण नहीं होता है और इस विकार युक्त Hb के कारण RBCs पतली व शीघ्र नष्ट हो जाती है, जिससे Hemolysis होता रहता है इस कारण Haemolytic anemia हो जाता है।
हीमोफीलिया (Hemophilia ) –
यह एक आनुवांशिक रोग है जो बच्चों में माता से स्थानांतरित होता है इसमें रक्त का - थक्का नहीं बन पाता है अर्थात् चोट लगने पर रक्त बहता ही रहता है।
एनसिफैलाइटिस (Encephalitis) -
मस्तिष्क के प्रदाह या सूजन (inflammation) के परिणामस्वरूप मस्तिष्क के कार्यों के गड़बड़ाने की अवस्था को एनसिफैलाइटिस कहते हैं।
आक्षेप (Convulsion)
आक्षेप या झटके मस्तिष्क के कार्यों का अस्थाई व्यावधान है जिसमें अनैच्छिक रूप से - पेशीय संवेदी व मानसिक कार्यों में व्यवधान उत्पन्न होता है। इसमें चैतन्यता का लोप भी पाया जाता है। इसमें अचानक ऐच्छिक पेशियों का ताकत के साथ अनैच्छिक संकुचन पाया जाता है। इसमें मस्तिष्क कार्यों (brain functions) जैसे- सोच (feelings), मनोवृत्ति (mood) इत्यादि में भी व्यवधान पाया जाता है।
अस्थमा या दमा (Asthma)
अस्थमा श्वसन नली का एक ऐसा रोग है जिसमें साँस नली की पेशियाँ सिकुड़ (spasm) जाती हैं एवं अधिक मात्रा में बलगम निर्माण हो जाता है। इसके कारण श्वसन मार्ग संकरा या अवरूद्ध हो जाता है और रोगी को साँस लेने में परेशानी होती है।
निमोनिया (Pneumonia) -
फेफड़ों की बाहरी परत (parenchyma) में संक्रमण एवं प्रदाह (infection and inflammation) का होना निमोनिया (pneumonia) कहलाता है।
एम्फाइमा (Empyema)
प्लूरल केविटी (pleural cavity) में मवाद (pus) एवं अपघटित ऊतकों (necrotic - tissue) का जमाव होना empyema कहलाता है।
श्वसनीय संक्रमण (Respiratory Infection)
श्वसन तंत्र में वे सभी शारीरिक अंग सम्मिलित होते हैं जिनसे 1 श्वसन प्रक्रिया सम्पन्न होती है। श्वसन तंत्र में शामिल होने वाले अंगों में किसी भी प्रकार का संक्रमण होने पर यह स्थिति श्वसनीय संक्रमण (respiratory infection) कहलाती है।
आंत्रीय अवरोध (Intestinal obstruction) •
यह एक असामान्य स्थिति है जिसमें आंत्रीय मार्ग, आंशिक या पूर्णतः बन्द हो जाता है एवं पाचन पदार्थ प्रवाह अवरूद्ध हो जाता है।
हर्शप्रग्न रोग (Hirschsprung's Disease) –
यह एक प्रकार का नाभिकीय अवरोध है, यह वृहदान्त्र के दूरवर्ती - भाग (distal colon) के उपश्लेष्मीय व पेशीय स्तर में तंत्रिका गैन्गलिऑन कोशिकाओं की अनुपस्थिति के कारण क्रमाकुंचन गतियों के अभाव के परिणामस्वरूप होने वाला आंत्र अवरोध है। इस रोग को जन्मजात एगैंगलियॉनिक मेगाकोलोन (congenital aganglionic megacolon) भी कहते हैं।
प्रमस्तिष्कीय क्षति (Cerebral Trauma ) -
किसी बाह्य यांत्रिक बल के कारण. खोपड़ी (skull). सिर की त्वचा. मस्तिष्क, कपाल (cranium) व तानिकाओं (meninges) को लगी चोट सिर की चोट या प्रमस्तिष्कीय क्षति कहलाती है। यह बच्चों में मृत्यु का एक बड़ा कारण है।
बाल मधुमेह (Juvenile Diabetes) -
इंसुलिन की मात्रा में कमी होने या इसके प्रभावहीन होने से मधुमेह उत्पन्न होता है। मधुमेह में इंसुलिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा के चयापचय में विकार उत्पन्न हो जाता है एवं ग्लूकोज के प्रति असहनीयता विकसित हो जाती है एवं परिणामस्वरूप रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है एवं ग्लूकोज मूत्र में भी प्रकट होने लगता है।
हाइपोथायरॉइडिज्म (Hypothyroidism) –
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें थाइरॉयड ग्रंथि अपर्याप्त थाइरॉयड - हार्मोन का स्राव करती है। इसमें T4 का उत्पादन अपर्याप्त हो जाता है एव TSH की कमी भी हो जाती है।
कुशिंग सिन्ड्रोम (Cushing's Syndrome) -
एड्रिनल ग्रन्थि ( adrenal gland) के cortical भाग में बनने वाले cortisol or glucocorticoids के अतिस्रवण (hypersecretion) के कारण होने वाले syndrome को cushing's syndrome कहते हैं।
बुद्धि-हास (Mental Retardation) -
मानसिक विमन्दिता वह अवस्था है जिसमें सामान्य बुद्धिमत्ता औसत से कम एवं अनुकूलित व्यवहारों यथा सोचना सीखना, सामाजिक व्यावसायिक व सांस्कृतिक समायोजन इत्यादि में विकार या कमी हो । सामान्य बुद्धिमत्ता 1. Q. 70 से कम होने पर उसे मंद बुद्धि बालक (mentally retarded) की श्रेणी में रखते हैं।
ऑस्टियोमाइलाइटिस (Osteomyelitis) -
अस्थि, अस्थिमज्जा एवं आस-पास के ऊत्तकों के संक्रमण को ऑस्टियोमाइलाइटिस कहते हैं। यह अधिकतर 3 से 14 वर्ष की आयु के बीच होता है। यह मुख्यतः बढ़ती हुई अस्थियों की बीमारी है एवं लंबी अस्थियों के metaphyseal क्षेत्र को प्रभावित करती है एवं लड़कियों की अपेक्षा लड़कों में अधिक होती है।
निर्जलीकरण (Dehydration) -
शरीर से जल का अत्यधिक मात्रा में निष्कासन होना ही निर्जलीकरण कहलाता है। जिससे शरीर में तरल पदार्थ का आयतन घट जाता है।
कंगारु मातृरक्षा (Kangaroo Mother Care ) -
कंगारु मातृरक्षा को त्वचा से त्वचा का संपर्क (skin to skin contact) भी कहा जाता है। इस तकनीक का उपयोग अधिकांश प्री टर्म व कम वजन वाले शिशु के लिए किया जाता है। कंगारु मातृरक्षा का मुख्य उद्देश्य शिशु को एकनिष्ठ स्तनपान कराना, मां व बच्चे के बीच भावनात्मक संबंध मजबूत करना व अस्पताल से जल्दी छुट्टी प्राप्त करना है। इसमें शिशु को माता त्वचा के संपर्क द्वारा अपने वक्ष से लगाकर रखती है।
मुखपाक या मुखव्रण ( Thrush) -
यह एक फंगल संक्रमण है जो कैन्डिडा एलबीकन्स (Candida albicans) के द्वारा होता है। शिशु शुरु के 3-4 दिन ठीक से पोषण लेने के बाद अगर पोषण के प्रति अनिच्छा प्रकट करता है तो मुखपाक इसका कारण हो सकता है।
. ऑफ्थैलमिया नीयोनेटोरम (Ophthalmia Neonatorum)
• नवजात शिशु के जन्म से 21 दिनों के भीतर आंखों - से कोई भी पस युक्त स्त्राव (purulent discharge) निकलना ऑफ्थैलमिया नीयोनेटोरम कहलाता है। इसमें शिशु की दानों आंखें लाल भी हो जाती हैं।
अपगार स्केल (Apgar Scaling) -
जन्म के समय अपगार स्केल विधि से शिशु की दशा (condition of infant) का त्वरित ऑकलन किया जाता है। यह जन्म के तुरन्त एक मिनट बाद व जन्म के पाँच मिनट बाद किया जाना चाहिए। इस स्कोरिंग में शिशु के पाँच जीवन चिह्नों हृदय-धड़कन दर, श्वसन दर, पेशीय तन्यता. उत्तेजनशीलता व शिशु के रंग का मूल्यांकन कर उन्हें 0, 1 व 2 अंक प्रदान किए जाते हैं। इनके योग से जन्म पर शिशु की दशा व तत्सम्बन्धी आवश्यक देखभाल की जानकारी मिलती है।
फैलोट का चतुष्क (Tetralogy of Fallot )
- इसमें हृदय में एक साथ चार विकार उपस्थित रहते हैं अत: इसे टेट्रालॉजी ऑफ फैलेट कहते हैं। यह देहनीलता हृदय रोग (cyanotic heart disease, CHD) का सर्वमान्य प्रकार है।
हाइपोथर्मिया (Hypothermia) • जब शरीर का तापमान 95°F के नीचे आ जाए तो ऐसी स्थिति न्यून तापता या हाइपोथर्मिया कहलाती है।
विलम्स ट्यूमर (Wilm's Tumor) -
• विलम्स ट्यूमर को नेफ्रोब्लास्टोमा भी कहा जाता है यह बालकों में सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर का एक प्रकार है। विलम्स ट्यूमर बच्चों के गुर्दे में पाया जाता है। इसकी शुरुआत अधिकतर 4 माह से 6 वर्ष के बच्चों में अधिक होती है। इसका नाम जर्मन डॉ. मैक्स विलम्स के नाम पर पड़ा जिन्होंने वर्ष 1899 में इस रोग के बारे में सर्वप्रथम लिखा ।
कोपलिक स्पॉट (Koplik Spot) –
कोपलिक स्पॉट सफेद केन्द्रों से युक्त छोटे-छोटे लाल धब्बे होते हैं जो खसरा - (measles) में विस्फोट के प्रकट होने से 2-3 दिन पूर्व मुख की श्लेष्मिक कला पर प्रकट होते हैं।
- टाइफाइड (Typhoid) -
यह साल्मोनैला जीवणु जनित संक्रामक रोग है जिसमें संक्रमण आहारनाल से प्रारम्भ होता है। एवं संपूर्ण शरीर को प्रभावित करता है।
ब्लेफेराईटिस (Blepharitis) -
आंखों की पलकों के प्रदाह व लाल होने को ब्लेफेराईटिस कहते हैं। यह एक आंखों का एक सामान्य विकार है जो बैक्टीरिया के कारण अथवा त्वचा की स्थिति जैसे डैंड्रफ आदि के कारण हो जाता है।
कुपोषण (Malnutrition) -
कुपोषण एक स्थिति है जिसमें बच्चे को खाने से पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त नहीं हो पाते हैं अथवा खाने में पोषक तत्वों की कमी के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याएं कुपोषण का परिणाम हैं। पोषक तत्वों में कैलोरी, प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट आदि सम्मिलित होते हैं।
नवजात अल्प रक्त शर्करा न्यूनता (Neonatal Hypoglycemia)
एक परिपक्व नवजात शिशु के रक्त में - ग्लूकोज का स्तर 40 mg/dL से कम व अपरिपक्व (प्री टर्म) नवजात शिशु में 30 mg/dL से कम हो जाने की स्थिति अल्प रक्त शर्करा न्यूनता कहलाती है। यह यकृत में ग्लूकोज के बनने की प्रक्रिया की असफलता के कारण होता है।
. पीडियाट्रिक नर्सिंग (Pediatric Nursing) –
पीडियाट्रिक नर्सिंग वह नर्सिंग है जिसमें बीमार बच्चों की देखभाल, सामान्य बच्चों का शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास तथा बच्चों के स्वस्थ बने रहने के सिद्धांत शामिल होते हैं।
• टेम्पर टेन्ट्रम (क्रोधावेश / उपद्रव) (Temper-tantrum) -
टेम्पर टेन्ट्रम की अवस्था अधिकतर 2-4 वर्ष के बच्चों में पाई जाती है। यह बच्चे के व्यवहारिक उपद्रव (emotion outburst) को प्रकट करने का तरीका है। इसमें बच्चा रोकर, चिल्लाकर, शोर मचाकर, जमीन पर लेटकर, हाथ-पैर फेंककर आदि प्रकार से अपना व्यवहार प्रकट करता है।