Fundamental Of Nursing, Bed Sore Or Decubitus Ulcer, GNM First Year

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आज आप सभी के बीच एक महत्त्वपूर्ण प्रशन लेकर आए हैं, जो आपके GNM First Year Notes से है , Fundamental Of Nursing Important Questions Answers, Fundamental Of Nursing Hindi Notes, Foundation Of Nursing Important Questions Answers Notes In Hindi.




Q. बिस्तरी घाव क्या है? बेहोश रोगी के बिस्तरी घाव की रोकथाम कैसे की जाए? 

What is bed sore? How we prevent bed sore in unconscious patient? 

Or 

दाब व्रण या शय्या व्रण किसे कहते हैं? इसके सामान्य स्थान, कारण व लक्षण लिखिए। 

What is decubitus ulcer? Write its common sites, causes and symptoms. 

Or

बेड सोर को परिभाषित करें। इसके सामान्य स्थान व कारण लिखिए एवं इसकी रोकथाम व उपचार कैसे कर सकते हैं?

Define bed sore. Write its common sites and causes. How we treat and prevent bed sore?


उत्तर- किसी व्यक्ति या मरीज के लम्बे समय तक बिस्तर पर लेटे रहने या कुर्सी पर बैठे रहने से या फिर एक ही स्थिति में बने रहने से उसके शरीर के कुछ ऊतक क्षेत्रों पर दबाव पड़ने के कारण उन अंगों की ओर रक्त संचार कम हो जाता है जिससे ऊतकों की क्षति (necrosis) हो जाती है और वहाँ घाव बन जाते हैं। इस तरह होने वाले घावों को दाब व्रण, बिस्तर व्रण या बिस्त घाव कहते हैं। इन्हें शय्याव्रण (decubitus ulcer) भी कहा जाता है।


बिस्तरी घाव होने के सामान्य स्थान (Common sites of Bed Sore) -


1. सुपाइन स्थिति (Supine position ) - 

सिर का पश्च भाग (Posterior portion of head), कंधे (Shoulder), कोहनियाँ (elbows), कमर (waist), नितम्ब (buttocks), एड़ियाँ (heels) 


2. अधोमुख स्थिति (Prone Position) – कान (Ear), छाती (Chest), गाल (Cheeks), घुटने (Knees), महिलाओं - में स्तन (Breast), पुरूषों में जननांग, पाँव की अंगुलियाँ (Toes)


3. पाश्र्वं स्थिति (Lateral Position) कान (Ear), कंधों (Shoulder), गाल (Cheeks), पसलियाँ (Ribs), नितम्ब - का ग्रेटर ट्रोकेन्टर घुटने का पार्श्व (Lateral side of knees), टखना (Ankle)


4. फाउलर्स स्थिति (Fowler's position) सिर का पिछला भाग (Posterior portion of head), कन्धे (Shoulder), कोहनियाँ (Elbow), सेक्रम (Sacrum), नितम्ब (Buttocks), एडियाँ (Heels) 

5. बैठी हुई स्थिति (Sitting Position) नितम्ब (Buttocks), एड़ियों के पीछे वाला हिस्सा (Back of heel), सैकरम (Sacrum), कंधे (Shoulder)

दबाव व्रणों के कारण (Causes of Pressure Sore) - दाब व्रण दो प्रकार के हो सकते हैं-


A. प्रत्यक्ष या तात्कालिक कारण (Direct or immediate causes)

B. रोग प्रवण या रोगोन्मुख कारण (Pre-disposing factor causes)

 A. प्रत्यक्ष या तात्कालिक कारण (Direct or immediate causes) -


1. दबाव (Pressure) - मरीज का लम्बे समय से एक ही स्थिति में लेटे रहने से शरीर के ऊतक, अंग या दाब बिन्दु पर दबाव पड़ने से घाव उत्पन्न हो जाते हैं।


 2. घर्षण (Friction ) - मरीज के शरीर का कोई भी ऊतक, अंग यदि किसी कठोर या खुरदरी सतह के घर्षण या रगड़ में आता है तब भी ऊतकों की क्षति हो जाती है और घाव उत्पन्न होते हैं।

3. नमी (Moisture) 

लम्बे समय से किसी मरीज के शरीर के ऊतक अंग यदि नमी के सम्पर्क में रहते हैं तो उसकी त्वचा नम होने के कारण आसानी से गल सकती है और त्वचा का मृदुकरण (maceration) भी हो जाता है। ऐसे मरीज जिन्हें पसीना ज्यादा आता हो उन्हें भी दाबवण होने की संभावना होती है।


4. रोगजनक जीवों की उपस्थिति (Presence of pathogenic organism )

 नियमित रूप से साफ सफाई न होने - से शरीर में सूक्ष्म जीव उत्पन्न या उपस्थित हो जाते हैं। अतः त्वचा पर संक्रमण (infection) हो जाता है।


B. रोगोन्मुख कारण (Pre-disposing causes) -

1. घटी हुई जीवन शक्ति

2. दुर्बलता

3. इडीमा (oedema)

4. स्थूलता (obesity)

5. क्षतिग्रस्त रक्त संचार (improper blood circulation)

दाब व्रणों के लक्षण (Sign and symptoms of bed sore) -

1. लालपन (Redness)

2. जलन (Burning sensation)

3. दाबवेदना (Tenderness)

4. बैचेनी

5. नीला पड़ जाना (Cyanosis)

6. असुविधा (Uneasiness)

7. स्थानीय ईडीमा (Oedema)

8. प्रभावित क्षेत्र ठंडा तथा संवेदनशील लगता है।


बिस्तरी घाव की स्टेज (Stage of Bed sore) - 


1. स्टेज I - रोगी की त्वचा लाल हो जाती है और त्वचा में चमक आने लगती है। इसमें रोगी की एपिडरमिस (epidermis ) त्वचा सम्मिलित होती है तथा त्वचा नरम व पीड़ाजनक हो जाती है। 

2. स्टेज II - इसमें त्वचा का रंग नीला पड़ जाता है तथा epidermis के साथ-साथ dermis layer भी प्रभावित हो जाती है। त्वचा पर पानी से भरे फफोले उत्पन्न हो जाते हैं तथा खुले घाव की तरह दिखाई देने लगते हैं।


3. स्टेज III :- इसमें त्वचा की तीनों परतें epidermis, dermis तथा subcutaneous प्रभावित हो जाती हैं। घाव में से रिसाव शुरू हो जाता है तथा त्वचा का रंग भूरा व नीला-पीला पड़ जाता है।


4. स्टेज IV :-. ये बड़ी ही गम्भीर अवस्था होती है। इस अवस्था में घाव बहुत ही गहरा हो जाता है तथा हड्डियाँ दिखने लग जाती हैं। घाव से बदबू आने लगती है तथा ऊतक नष्ट हो जाते हैं और त्वचा का रंग काला हो जाता है।

दाब व्रण ग्रहणशील मरीज (Bed sore susceptible patient) -


1. अचेतन्य मरीज (Unconscious patient) 

2. स्थूल मरीज (Obese patient)

3. अत्यधिक दुबले-पतले मरीज (Very thin patient)

4. संवेदनहीनता से पीड़ित मरीज

5. कुपोषणग्रस्त मरीज

6. शल्यक्रिया ग्रस्त मरीज

7. अतिज्वरग्रस्त मरीज जिन्हें अधिक पसीना आता हो।

8. अत्यधिक उम्र के शय्याग्रस्त मरीज

9. मधुमेह के मरीज

10. मूत्र एवं मल के असंयम से पीड़ित मरीज ।


बिस्तरी घाव में नर्सिंग देखभाल (Nursing care in Bed Sore) - 


1. रिस्क ग्रुप वाले मरीजों की पहचान करें।

2. मरीज को बिस्तरी घाव होने के कारण पता करें।

3. मरीज की त्वचा का दैनिक व नियमित रूप से परीक्षण करें।

4. मरीज के बिस्तरी घाव का अवलोकन करें।

5. मरीज की स्थिति समय-समय पर बदलते रहें।

6. बिस्तर को साफ-सुथरा एवं सलवट रहित व नमी रहित रखें।

7. मरीज तथा उसके परिजनों को मनोवैज्ञानिक सहारा प्रदान करें। 8. मरीज की व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखें।

9. मरीज को हवाई गद्दे या हवाई कुशन (air cushion) प्रदान करें।

10. मरीज को प्रतिदिन सुविधानुसार व्यायाम करवाएँ।

11. मरीज के घावों की सख्त विसंक्रमित तकनीक के साथ ड्रेसिंग करें।

12. मरीज के घाव के आस-पास के क्षेत्र को शुष्क एवं साफ रखें।

13. मरीजों को पर्याप्त मात्रा में तरल तथा उच्च प्रोटीन एवं विटामिनयुक्त आहार दें।

14. मरीज की पीठ पर पाउडर लगाएँ।

15. त्वचा की आरोग्य कारक शिक्षा के बारे में मरीज एवं उसके परिजनों को शिक्षित करें।

16. गीले कपड़े या बिस्तर तुरन्त बदल दें।


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दाब व्रणों की रोकथाम एवं उपचार (Prevention and Treatment of Bed Sore)


1. घाव को साफ करने के लिये नार्मल सलाइन (normal saline) का प्रयोग करें।


2. घाव को बोरिक एसिड लोशन या हाइड्रोजन परऑक्साइड (hydrogen peroxide) से साफ करना चाहिए।


3. घाव की उचित दूरी से 100 वॉट के बिजली के बल्ब द्वारा सिकाई करें।


4. चिकित्सीय निर्देशानुसार मरीज को एन्टीबायोटिक थैरेपी (antibiotic therapy) देनी चाहिए।


5. घाव की सतह पर जिंक ऑक्साइड लगाना चाहिये।


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