GNM First Year - Anatomy Physiology - Female Reproductive System -

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Reproductive system :- 

जिस प्रक्रम द्वारा जीव अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं, उसे प्रजनन कहते हैं। 

प्रजनन जीवों का सर्वप्रमुख लक्षण है। 

इस पृथ्वी पर जीव-जातियों की सततता प्रजनन के फलस्वरूप ही संभव हो पायी है।

 इस प्रकार प्रजनन वह प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी ही जैसी अन्य उर्वर सन्तानों की उत्पत्ति करता है और इस प्रकार अपनी संख्या में वृद्धि कर अपनी जाति के अस्तित्व को बराबर बनाए रखकर उसे विलुप्त होने से बचाता है।

 जीवों के प्रजनन में भाग लेने वाले अंगों प्रजनन अंग तथा एक जीव के सभी प्रजनन अंगों को सम्मिलित रूप से प्रजनन तंत्र कहते हैं। चलिए जानते हैं Reproductive System के बारे में।


Q. मादा जनन तंत्र

मादा जनन तंत्र में निम्नलिखित जनन अंग होते हैं-

अण्डाशय 

अण्डवाहिनियाँ 

गर्भाशय 

योनि


*अण्डाशय (ovary)

 प्रत्येक मादा में एक जोड़ा अंडाशय होता है। 

ये उदर के निचले भाग में श्रोणिगुहा (Pelvie cavity) में दोनों ओर दाएँ और बाएँ एक-एक स्थित होते हैं। 

प्रत्येक अंडाशय एक अंडाकार (Oval) रचना होती है। 

प्रत्येक अंडाशय लगभग 4 सेमी लम्बा, 2.5 सेमी चौड़ा और 1.5 सेमी मोटा होता है। 

अंडाशय पेरिटोनियम (Peritoneurn) झिल्ली द्वारा उदर (Abdomen) से सटा रहता है। 

अंडाशय के भीतर अंडाणुओं का अंडजनन द्वारा निर्माण होता है।

 अंडाशय का बाह्य स्तर एपिथीलियम का बना होता है जिसे जनन एपिथीलियम (Germinal epithelium) कहते हैं। 

Reproductive System में अंडाशय का आन्तरिक भाग तंतुओं एवं संयोजी ऊतक (Connective tissue) का बना होता है, जिसे स्टोमा (stroma) कहते हैं। 

अंडाशय का मुख्य कार्य अंडाणु (Ovum) पैदा करना है। 

अंडाशय से दो हार्मोन आस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा प्रोजेस्टेरान (Progesterone) का स्राव (Secretion) होता है, जो ऋतुस्राव (Menstruation) को नियंत्रित करते हैं।


*अण्डवाहिनियाँ ( Fallopian Tube )

अण्डवाहिनी या फैलोपियन नलिका की संख्या दो होती है, जो गर्भाशय के ऊपरी भाग के दोनों बगल लगी रहती है। 

प्रत्येक फेलोपियन नलिका लगभग 10 सेमी लम्बी होती है।

 इस नलिका का एक सिरा गर्भाशय से सम्बद्ध रहता है और दूसरा सिरा अण्डाशय की ओर अंगुलियों के समान झालर बनाता है। इस रचना को फिम्ब्री (Fimbri) कहते हैं।

 अण्डाणु जब अण्डाशय से बाहर निकलता है तब वह फिम्ब्री द्वारा पकड़ लिया जाता है।

 इसके बाद अण्डाणु फेलोपियन नलिका की गुहा में पहुँच जाता है। 


फेलोपियन नलिका से अण्डाणु गर्भाशय में पहुँचता है। फेलोपियन नलिका का प्रमुख कार्य फिम्ब्री द्वारा अण्डाणु को पकड़ना और गर्भाशय में पहुँचाना है

*गर्भाशय (Uterus)

यह एक नाशपाती के समान रचना होती है जो श्रोणिगुहा (Pelvie Cavity) में स्थित होती है। 

यह सामान्यतः 7.5 सेमी लम्बा, 5 सेमी चौड़ा तथा 3.5 सेमी मोटा होता है। 

इससे ऊपर की तरफ दोनों ओर अर्थात् दाएँ और बाएँ कोण पर अण्डवाहिनी खुलती है। 

इसका निचला भाग सँकरा होता है जिसे ग्रीवा (Cervix) कहते हैं। 

ग्रीवा आगे की ओर योनि में परिवर्तित हो जाता है। 

गर्भाशय का निचला छिद्र इसी में खुलता है। 

 गर्भाशय की भित्ति पेशीय (Muscular) होती है, जिसके भीतर खाली जगह होती है।

 गर्भाशय की भित्ति के अंदर की ओर एक कोशिकीय स्तर होता है जिसे गर्भाशय अंत: स्तर (Endometrium) कहते हैं। 

गर्भाशय प्रमुख कार्य निषेचित अण्डाणुओं को भ्रूण परिवर्द्धन हेतु उचित स्थान प्रदान करना है।


*योनि (Vagina)

 योनि की यह एक नली के समान रचना होती है।

 यह लगभग 7.5 सेमी लम्बी होती है।

 यह बाहर के तल से गर्भाशय तक फैली रहती है।

 इसके सामने मूत्राशय तथा नीचे मलाशय स्थित होता है।

योनि की दीवार पेशीय ऊतक की बनी होती है। 

योनि का एक सिरा मादा जनन छिद्र के रूप में बाहर खुलता है तथा दूसरा सिरा पीछे की ओर गर्भाशय की ग्रीवा (Cervix) से जुड़ा रहता है। 

योनि के शरीर के बाहर खुलने वाले छिद्र को योनि द्वार कहते हैं। 

योनि की दीवार में वल्बोरीथल ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं, जिससे एक चिपचिपा द्रव निकलता है।

 यह द्रव संभोग के समय योनि को चिकना बनाता है।

 योनि एवं मूत्रवाहिनी के द्वार के ऊपर एक छोटा-सा मटर के दाने के जैसा उभार स्थित होता है जिसे भग शिशिनका (Clitoris) कहते हैं। 

.यह एक अत्यन्त ही उत्तेजक अंग होता है, जिसे स्पर्श करने या शिश्न (Penis) के सम्पर्क में आने पर स्री को अत्यधिक सुखानुभूति होती है।

 मैथून के समय शिश्न से वीर्य निकलकर योनि में गिरता है तथा योनि इसे गर्भाशय में पहुँचा देती है। 


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