GNM Second Year - Oesophageal Atresia - Child Health Nursing

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Q. आहारनली की अविवरता या ईसोफेजियल एट्रेशिया क्या है? इसके कारण, चिकित्सीय लक्षण, उपचार व प्री एवं पोस्ट नर्सिंग प्रबंधन समझाइए । 

What is Oesophageal Atresia? Describe its causes, clinical features, treatment and pre and post nursing care.


आहारनाल की अविवरता (Oesophageal Atresia)


यह एक जन्मजात विकृति है जिसमें भ्रूणीय विकास के दौरान अपूर्णता के कारण ग्रासनली. ग्रसनी एवं आमाशय के बीच निरंतरता नहीं होती है। 

ग्रासनली एक फिस्टुला के द्वारा श्वास नली से संबद्ध हो सकती है जिसे श्वासनली ग्रसिका नासूर या नालव्रण (tracheoesophageal fistula) कहते हैं।


कारण (Causes) -


आनुवांशिक कारक


भ्रूणीय विकास की असफलता


पर्यावरण जनित कारक


चिकित्सीय लक्षण (Clinical Features) -


मुंह से निरंतर झागदार लार बहना


• भोजन के बाद उल्टी, खांसी व दम घुटना


अत्यधिक मात्रा में नाक से स्राव बहना


 • जन्म के तुरंत बाद दोष प्रकट हो जाता है।


• उदर-स्फीति


उपचार (Treatment) -


1. बालक को 30° कोण पर ऊंचा उठाकर रखना ताकि आमाशयी पदार्थ बाहर न निकल पाएं।


2. Sump drain द्वारा upper oesophageal pouch का suction करना।


3. गैस्ट्रॉस्टोमी करना ताकि आमाशय में दबाव कम हो एवं अंतःश्वसन को रोका जा सके तदुपरांत इसका उपयोग आहार देने


के लिए किया जा सकता है।


4. लाक्षणिक उपचार जैसे- एन्टीबायोटिक देना, ऑक्सीजन देना, IV. fluid देना इत्यादि ।


नर्सिंग प्रबंधन (Nursing Management) -

शल्यक्रिया से पहले नर्सिंग देखभाल (Pre Nursing Care)


1. ऑपरेशन से पूर्व बालक को मुख से कुछ भी न दें।


2. बालक के जैविक चिन्हों को चैक करें व किसी भी परिवर्तन पर तुरंत चिकित्सक को सूचित करें।


3. शिशु को संक्रमण से बचाएं।


4. डॉक्टर के निर्देशानुसार जरूरी दवाईयां व ऑक्सीजन प्रदान करें।


5. Suction द्वारा श्वसन मार्ग को साफ करें।


शल्यक्रिया के बाद नर्सिंग देखभाल (Post Nursing Care) - 1. बालक को गर्म उद्भव पात्र (incubator) में रखें।


2. Suction द्वारा श्वसन मार्ग को साफ करें जिससे श्वसन प्रक्रिया निरंतर बनी रहे व स्राव की मात्रा को नोट करें।


3. वाटर सील ड्रेनेज की देखभाल करें।


4. I.V. fluids द्वारा पोषण का स्तर बनाए रखें।


5. डॉक्टर के निर्देशानुसार एन्टीबायोटिक दें।


6. प्रत्येक आधे घंटे पर बालक के जैविक चिन्ह चैक व नोट करें


7. प्रत्येक चार घंटे में शिशु की स्थिति बदलते रहें।


8. आमाशयी छिद्र द्वारा शिशु को पोषण दें व इसकी स्वच्छता बनाए रखें।


9. शिशु की देखभाल में माता को सम्मिलित करें।


10. शिशु द्वारा मुख से आहार ग्रहण करने पर आमाशयी छिद्र बंद कर दिया जाता है।


11. किसी भी प्रकार की जटिलता दिखने पर तुरंत चिकित्सक को सूचित करें।


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